इन दिनों सोशल मीडिया पर बिहार को लेकर कुछ पंक्तियां ख़ूब वायरल हो रहीं हैं। पंक्तियां कुछ यूं है के ‘तुम बाढ़ बन के मेरी ज़िंदगी मे आओ तो मैं तुम्हें बिहार कि तरह अपना ना लू तो कहना’। जहाँ पूरा देश कोरोना वायरस को हराने का हर संभव प्रयास कर रहा हैं वहीं बिहार वासियों को कोरोना के साथ साथ बाढ़ से भी जूझना पड़ रहा हैं। बिहार के 16 जिले बाढ़ से प्रभावित है लगभग 75 लाख लोग बाढ़ के कारण अपना घर अपने खेत अपना सब कुछ गवा बैठे हैं।
ऐसे मुश्किल वक़्त में जनता के मन में एक आशा की किरण जाग उठती है के जिनको वोट देकर हमने सत्ता के सिंघासन तक पहुँचाया जो हमारे सामने नतमस्तक होकर ख़ुद को हमारा हमदर्द बताते थे वो आज इस मुश्किल वक़्त में शायद हमारी मदद जरूर करेंगे और जब बात बिहार के संदर्भ में हो रहीं हो तो ये आशाएं ये उम्मीदें और ज्यादा हो जाती हैं क्योंकि बिहार में चुनाव आने वाले है। हिंदुस्तान है हम सभी जानते है के नेता जी अक्सर चुनाव के वक़्त ही नज़र आते हैं।
ऐसा नहीं है के विधायक या सांसद जी बाढ़ प्रभावित इलाकों में नहीं पहुँचे बिहार की हमारी टीम जब बाढ़ प्रभावित इलाकों में पहुँची तो लोगो ने बताया के नेता जी आये तो ज़रूर थे पर जब उनसे पूछा के बाढ़ के कारण ख़राब हुई किसान की धान कि फ़सल का मुआवजा कब मिलेगा कब हमारे सरो पर फ़िरसे छत होगी जनता के ये सवाल सुन कर नेता जी जिस रास्ते से आये थे उसी से वापस चले गए।
नेता जी के अलावा कुछ सोशल मीडिया वाले युवा नेता भी पहुँचे थे अगर मेरे प्रधानमंत्री जी की भाषा मे कहुँ तो आपदा में अवसर तलाशने अपनी राजनीतिक प्रष्ठभूमि तैयार करने के लिए कुछ युवा नेता भी टिप टॉप हो सफेद कुर्ते पाजामे में आये थे पर दो तीन फ़ोटो किछवा कर चले गए।
बड़ी शर्मिंदगी की बात है के वर्चुअल रैलीया करना के लिए गाँवो तक स्मार्ट टीवी पहुँचने वाली सरकार उन्हीं गाँवो तक मदद नहीं पहुँचा पाई वो राजनीतिक पार्टियां जो पटना में साईकल चला कर धरना प्रदर्शन करते है पर उनकी भी साइकल का पहिया गांव की उन टूटी सड़को कि तरफ़ नहीं मुड़ा जहा उनकी वाकई जरूरत थी। पर चूँकि बिहार में जल्द चुनाव आने वाले है तो आप को बिहार मॉडल दिखाया जाएगा जो पटना के एसी वाले कमरो में बैठकर उन लोगो द्वारा बनाया जाएगा जिन्हें शायद बिहार में कितने जिले है ये भी नहीं पता होगा।